भारतीय संस्कृति से हमारा क्या अभिप्राय है?

 

लगभग, दो अरब वर्ष से आर्य लोग इस देश में अपने सनातन मूल्यों के आधार पर रह रहे हैं। कुछ कारणों से पिछले पाँच-छह हज़ार वर्षों से हमारे ‘मूल्यों’ का ह्रास हुआ है। पिछले लगभग 1000 वर्षों से, जबसे हमारा देश पराधीन हुआ है, यह ह्रास अत्यन्त तीव्र गति से हुआ है। हमारे सनातन मूल्यों को समझने वाले लोग बहुत कम रह गए हैं। हमारा देश, पश्चिम के देशों का गुलाम रहा है। इस कारण आज हमारे देश के मूल्य, नष्टता की कगार पर हैं और हमारा रहन-सहन पाश्चात्य संस्कृति में रंगता जा रहा है। उदाहरणार्थ, आज हमारे देश में पश्चिमी देशों की भांति धन को तो बहुत अधिक महत्व दिया जाने लगा है, परन्तु, धन कमाने के तरीकों को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है। सार रूप में, पाश्चात्य मूल्यों पर आधारित पाश्चात्य सभ्यता का ध्येय मनुष्य शरीर को अधिक से अधिक सुख पहुंचाना है। इसी ध्येय की प्राप्ति के लिए, वहां बहुत सी मशीनें बनाई गई हैं, जो आज के जीवन में बहुत लाभप्रद हैं। इन आधुनिक मशीनों के बावजूद, यह नहीं कहा जा सकता कि आज का मानव 200 साल पहले के मानव से आध्यात्मिक तौर पर ज़्यादा सुखी है। इसका कारण यह है कि इस आधुनिकता का आधार सनातन मूल्य नहीं । पाश्चात्य समाज की समृद्धि का अन्दाज़ा, इस बात से लगाया जा सकता है कि बहुत से पश्चिमी देशों में नारी को समानता का अधिकार मिले अभी 100 वर्ष भी नहीं हुए।

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